पुराने जख्मों को,
ताजा किए जा रहा है।
खुशी के पल में वो,
ग़म दिए जा रहा है।
हम तो भूल ही गए,
वो याद किए जा रहा है।
भरे जख्मों को फिर क्यों
ज़ख्म दिए जा रहा है।
रिश्ते जब तोड़ ही दिए
बड़े शौक से उसने,
फिर नये रिश्तों की,
शुरुआत किए जा रहा है।
हमने संभाला है खुद को,
बड़ी मुश्किल से,
आज फिर वही हमें,
अश्क दिए जा रहा है।
जिसने खेला हमारे
हरेक जज्बात से,
वर्षों बाद फिर वही,
झूठी सौगात दिए जा रहा है।
ज़ख्म खाया है,
जरुर किसी राहों पर
तभी तो लौट कर,
फरियाद किए जा रहा है।
जयलाल कलेत
छत्तीसगढ़