आंचल में दूध औ आंखो में
पानी भी है अब कम,
चूंकि इस दायरे से कभी
भी ना निकल पाए हम,
याद क्यूं नहीं रहती घर की नारी
क्या बस बह गईं वासना में सारी।
दिखावे की सब सहानुभूति,
मन में बस एक ही अनुभूति,
सारी मित्रता का भावी सपना,
क्यूं सजाते बस सेज पर अपना
तन तो क्या छोड़ेंगे ये दानव जब
छोड़ते ना आंखों से भी कोई मौका,
रेप क्या फकत शरीर का ही करते
कमी नहीं मानसिक में भी करते।
ना आठ की ना साठ की
महफूज अब नर पिशाच से,
ना बचपन बचा ना पचपन बचा,
कपट जाल ही जब वासना से रचा।
रिश्ते नाते भी तार तार हुए
रक्षक ही जब से भक्षक हुए,
खून के रिश्ते भी अब
इस लपट से ना बचे
बाहर निकलने से भी
कोई कब तक कैसे बचे।
चरित्र में ही बस गई शायद बेशर्मी
अपनाते दोषी पर हम दोहरे मापदंड,
भरपाई हो जाएगी क्या राव देने से
अपराधी को बस मात्र एक कड़ा दंड।
राव शिवराज पाल सिंह
इनायती, जयपुर, राजस्थान
परिचय :
‘राव’ शिवराज पाल सिंह, 66 वर्ष,
स्कूल दिनों से ही लेखन, स्कूल पत्रिका का छात्र संपादक मात्र 14 वर्ष की उम्र में।
विरासत सरंक्षण के लिए 1982 से प्रतिबद्ध। अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विरासत सरंक्षण संस्था भारतीय सांस्कृतिक निधि ( Intach/Indian National Trust for Art and Cultural Heritage) के करौली चैप्टर के सहसंयोजक के रूप में विरासत संरक्षण से जुुुडाव और करौली के विरासत सरंक्षण में अनेक उपलब्धियां, पुरानी हस्तलिखित पांडुलिपियां सरंक्षण का उल्लेखनीय कार्य। करौली जिले की विरासत पर एक पुस्तक भी प्रकाशित। प्रसिद्ध पक्षीविद, पर्यावरण, वाइल्ड लाइफ एवम् हेरिटेज फोटोग्राफर।
कविताएं, कहानियां के साथ विरासत पर पुस्तक प्रकाशन भी हुए हैं। समाज सेवी तथा स्वयं सेवी संगठन तथा धार्मिक ट्रस्टों से जुड़ाव। वर्षा संबंधी पारंपरिक ज्ञान एवम् पक्षियों पर पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य, सम सामयिक विषयों पर बेबाक लेखन। कविता संग्रह में भी कविताएं प्रकाशित, करौली के इतिहास पर अंग्रेजी में एक पुस्तक, करौली के पक्षी जगत पर पुस्तक तथा मौसम के परमपरागत ज्ञान, पर पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य। हिंदी एवम् अंग्रेजी में समान रूप से लेखन। समसामयिक विषयों, हिन्दू धर्म, संस्कृति, साहित्य और व्यंग्य पर लेखन।
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