मीत मेरे तुम भूल न जाना,
रिश्ता बहुत पुराना है।
मंजिल कठिन हो चाहे जितनी,
मिलकर सफल बनाना है।।
कितनी उलझन है जीवन में,
कदम-कदम पर कांटे हैं।
दर्द न जाने कितने हमने,
तन्हाई में बांटे हैं।
आया पतझड़ सावन में क्यों,
चमन हुआ वीराना है।।
मंजिल कठिन हो चाहे जितनी,
मिलकर सफल बनाना है।।
प्यार को पाने की चाहत में,
हम पर कितना पहरा था।
गर्दिश से न उबर सके हम,
जीवन यूं ही ठहरा था।।
मधुबन जो हो गया अनबना,
उसको आज मनाना है।।
मंजिल कठिन हो चाहे जितनी,
मिलकर सफल बनाना है।।
पायल की धुन सुनने को फिर,
मन मयूर बेचैन हुआ।
फिर आंखों ने सपने बुनकर,
तनहाई में मुझे छुआ।।
सोए थे अरमान जो दिल में,
उनको आज जगाना है।।
मंजि कठिन हो चाहे जितनी,
मिलकर सफल बनाना है।।
रामसेवक वर्मा
विवेकानंद नगर, पुखरायां,
कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश