आज बीमार है पृथ्वी
उसके एक-एक अंग को
दग्ध किया है हमने
अमृत की धार लेकर
बहने वाली नदियों में
हमने इतना ज़हर घोला
कि वे स्वयं मृत्यु से जूझ रही हैं
पर्वतों की काया हमने
काट-काट डाली
जगह-जगह से छेदा उन्हें
रौंदा उन्हें
जंगल के जंगल काट डाले हमने
उजड़ गए मासूम प्राणियों के बसेरे
पंछी विलाप करते रह गए
अब वे जाएं तो कहां जाएं
इमारतों के नीचे दफ़न हो गई हैं झीलें
जलचर प्लास्टिक निगलकर मर रहे हैं
आतंकित हैं वृक्ष
आतंकित हैं पशु-पक्षी
आतंकित है संपूर्ण धरा
इन दो टांगो वाले जीवों से
मानव ने
संपूर्ण सृष्टि में उत्पात मचाकर
अशांत किया है वसुंधरा को
और इस तरह
स्वयं अपने विनाश को
आमंत्रित किया है
यदि उसे जीवन से प्रेम है
तो उसे लौटना होगा
प्रकृति की ओर
अंजना वर्मा
बृज बिहारी लेन , ब्रह्मपुरा,
मुजफ्फरपुर, बिहार-842003