कब तक चुप रहे यह नारी
अब तो कुछ करना होगा
अहिंसा को हिंसा के विरुद्ध लड़ना होगा
कब तक चुप रहे यह नारी
अब तो कुछ करना होगा
जल रही है आँखों में
हर निर्भया के चिंगारी
इसको दुनिया में अब
कैसे कम करना होगा
जिसको हर सूरत में देखते हो
उसका ख्याल रखना होगा
कब तक चुप रहे यह नारी
अब तो कुछ करना होगा
छोड़ दिया जाता है बाज़ारों में
वक़्त के मुजरिमों को
इनको हर बेटी के सामने
तड़प तड़प कर जलना होगा
जैसे जालाई जाती हर बेटी
उनको भी उसी आग में जलना होगा
कब तक चुप रहे यह नारी
अब तो कुछ करना होगा
वकालत दौलत के आगे
तमाशा देखने वाले वकील को आज
हर माँ बहन बेटी का हिसाब देना होगा
कब तक चुप रहे यह नारी
अब तो ‘जुबैर’ कुछ करना होगा
ज़ुबैर खान