तेरी मेरी जिंदगी का अब हिस्सा हो गया,
ये किस्सा अब आम हो गया,
उसका नजरों से हमें घूरना ,
घूर कर हमें छेड़ना,
छेड़ कर अपशब्द कहना,
अपशब्द कह कर हमें
नोचने की चाह रखना,
ये तो जैसे अब रोज का हो गया।
पर अब ये और नहीं,
सरकार का हमें मुंह नहीं ताकना,
खुद के लिए हमें खुद है लड़ना,
सजग रहो तुम मेरी बहना,
मत ताको अब किसी का आसरा,
आत्मरक्षा का हर प्रयास तुम सीखो,
छोड़ दो ये लोगों को देखना।
लड़की जन्म हुआ तो क्या,
दुर्गा काली को भूल गए ये,
रूप अब इन्हे दिखला दो अपना,
लडो तुम अब खुद के लिए,
अब अपने जीवन के लिए,
लूटना चाहे जो आबरू तुम्हारी,
तोड़ देना तुम उसका सपना,
वो एक मारे तुम चार मारना,
वो एक बोले तुम सौ बोलना,
बहुत हुआ अब ये सहना।
फिर ना रहेगा ये किस्सा जिंदगी का
ना रहेगा ये हिस्सा जिंदगी का।।
शिखा सिंह ‘प्रज्ञा’
लखनऊ, उत्तरप्रदेश