प्रियंका सिंह
बीए प्रथम श्रेणी छात्रा,
सरकारी कॉलेज,
सेक्टर- 11, चंडीगढ़
थका-हारा सोचता है मन
उलझती ही जा रही हैं एक उलझन।
अंधेरे में अंधेरे से कब तक लड़ते रहेंगे
सामने जो दिख रहा है उस पर
यकीन कब तक करते रहेंगे।
कब तक खुद की हकीकत से डरते रहेंगे
सब जानकर भी कब तक
खामोशी की चुप्पी भरते रहेंगे।
झूठ को कब तक सच मानकर जीते रहेंगे
कब तक दुखों से मिले दर्द को दिल में छुपाकर
झूठी मुस्कराहट लेकर चलते रहेंगे।
जिंदगी की शतरंज में कब तक
अपने वजूद के लिए लड़ते रहेंगे,
कब तक दुनियादारी से डरते रहेंगे।