हरे पत्तों
लाल कोपलों
लंबी शाखाओं से
लहलहाता है वृक्ष
उसके
रंगबिरंगे फूल
फल बनते हैं
धीरे-धीरे
यह परिपक्वता
एक झटके से नहीं आती
प्रकृति कोई विशेष उपक्रम
नहीं सजाती
रस, सुगंध, स्वाद से
भरी होती है पूर्णता
पूर्णता का प्रतीक है फल
क्रमशः आते हैं वांछित पल
बिना बोए
कब मिलती है फसल
पशु, पक्षी, जीव, जंतु
कभी नहीं करते किंतु परंतु
हम भी करें
जीने की तैयारी
साथ-साथ रहें
खिलें बारी-बारी
वृक्ष बनना है
तो बीज को धरातल दो
प्रकाश, खाद, जल दो
नष्ट करो स्वयं का अस्तित्व
एक दिन फलित होगा कृतित्व
गौरीशंकर वैश्य विनम्र
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