सुर्ख़ लाल जोड़े में आयी थी
सुर्ख़ लाल जोड़े में जाना चाहती हूँ।
पैरों से चलकर आयी थी तेरे घर
कांधे पे तेरे जाना चाहती हूँ।
नादान सी मोहब्बत थी मेरी
पर तेरा ही साथ चाहती हूँ।
हर लम्हा हसाया हैं तूने मुझे
हँसकर ही तुझसे विदा चाहती हूँ।
बचकानी ही रही हरकतें मेरी
पर तेरा ही प्यार चाहती हूँ।
उलझी रही अपने आप मे ही
हर वादे को निभाना चाहती हूँ।
ताउम्र पूरी की हर ख्वाहिश तूने
तेरे हाथों सजी मांग से जाना चाहती हूँ।
मोहब्बत नही करनी आयी मुझे
पर प्यार तुझी से है कहना चाहती हूँ।
हर सफ़र रहा तू हर कदम मेरे
अंतिम सफ़र तेरे कांधे पे चाहती हूँ।
मुस्करा के विदा किया मैंने तुझे रोज
मुस्कुरा के ही तुझसे विदा चाहती हूँ।
जिंदगी कितनी भी हो मेरी
हो तुझसे एक लम्हा कम चाहती हूँ।
मैं बस सुहागन जाना चाहती हूँ
मैं बस सुहागन जाना चाहती हूँ।
गरिमा राकेश गौतम
कोटा, राजस्थान