लबों पर तेरा नाम हो या ना हो मग़र,
दिल की धड़कनें तेरे नाम से चलती है।
जब भी उदास हो जाता हूं जीवन में,
मन में तू रोशनी बनकर के खिलती है।
दूर होकर भी नहीं है तू दूर मुझसे कभी,
रोज शायरी में एहसास बन मिलती है।
मुझे पता है मुमकिन नहीं अब आना तेरा,
फिर भी तेरी राह में हर शाम ढ़लती है।
मैं तो ग़म में भी खुश हो लेता हूं संजय
जब उसकी खैरियत की खबर मिलती है।
संजय अश्क
पुलपुट्टा, बालाघाट
9753633830