मन को छू ले ऐसी है काया
ऐसे ही फलती रहे देती है छाया
तुझे बार बार मै देखूं
मन ही मन पुलकित हो जाऊं
तु जूही चम्पा चमेली
झूमे अमवा की डाली
नदियां बरखा तेरी सहेली
हवाओं संग खेले अठखेली
तू जीवन दान देती
सुधा रस बरसाती
हे मनमोहिनी तुझे,
कभी कलम से पिरोऊं
कभी चित्रो से संवारुं
ऐसे ही फलती रहे देती है छाया
प्रियंका पाण्डेय त्रिपाठी
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश