ऐ मानुष: ममता शर्मा

ऐ मानुष!
मनुष्य का तन पाकर
तू इस जहां में आया
तूने तो खोया और क्या पाया

भूल गया तू कर्तव्य
अपने मनुष्य होने का
और
दौड़ रहा हैं एक ऐसी दौड़ में
जिसका कोई अंत ही नहीं है

भुला कर अपनी संस्कृति और सभ्यता
तूने पश्चिमी संस्कृति और सभ्यता को अपनाया

भुला कर अपनी हिंदी बोली
तोते की तरह तूने
पश्चिमी बोली को रट डाला
भुलाकर तूने इंसानियत
तूने हैवानियत को अपनाया

छोड़कर विश्वास को
अंधविश्वास और आडम्बरों को अपनाया

पूरा जीवन तूने
झूठी शान में गंवाया
दौलत के लिए
तूने अपनों को भी ठुकराया
आखिर में लौटकर तू खाली हाथ ही आया

न तूने कुछ खोया
और
न ही कुछ पाया
खाली हाथ तू गया था
और
खाली हाथ ही लौटकर आया

ममता शर्मा
पीजीजीसीजी-42
चंडीगढ़