प्रियंका महंत
रायगढ़, खोखरा,
छत्तीसगढ़
ना ही मैं कोई बिमारी हूँ,
हाँ मैं ही माहवारी हूं।
मासिक धर्म, रजोधर्म या रक्तस्राव कह लो मुझे,
सात दिनों का महीना मैं ही तो कहलाती हूँ।
क्यों समझता है समाज अस्पृश्य मुझे?
मैं तो हर स्त्री की भलाई के लिए ही आती हूँ।
क्यों इतना घृणा करते हो मुझे?
तेरे इस दुनिया में आने का कारण मैं ही तो हूँ।
रसोई, मंदिर में पूजा-पाठ में क्यों वर्जित हूं मैं,
मैं तो इस प्रकृति की ही देन कहलाती हूँ।
क्यों शुभ कार्यों में शामिल होने पर रोक-टोक है मुझे?
समाज के लिए अशुभ हूंँ?
जो खुशहाल माहौल में मातम सी जाती हूँ।
करते हो मेरे नाम को लेकर अपमानित मुझे,
स्त्री जाति के लिए हूँ मैं महावरदान।
ये आज मैं तुम्हें स्वयं बताती हूँ।
ना ही मैं कोई बिमारी हूँ,
हाँ मैं ही माहवारी हूँ।