आप क्या हो ये बतलाना चाहती हूँ
आपको सादर चरण नमन करती हूँ
आप मेरे जीवन की प्रेरणा, विश्वास हो
मेरे जीवन के, सच में आप ‘सर’ महान हो।
अन्धेरों में मेरे आप जलता चिराग हो,
मेरे नए जीवन के आप ही भगवान हो।
आपका हर शब्द मेरी प्रेरणा बन जाता है,
मेरी हर कविता में नजर आता है
लेखनी को मेरी आपके आशीर्वाद का इंतजार,
कविता अधूरी सी है जब तक न हो आपका साथ
लिखती हूँ जब भी दो बूँद गिराती हूँ,
बहुत रो चुकी, अब रोना नहीं चाहती हूँ।
आत्मा तड़प रही हैं, आपके आशीष को आज,
हे प्रभु-तू ही पहुंचा अर्जी ‘सर’ के पास।
खता क्या थी मुझे तो ये भी मालूम नहीं,
पर दंश का बोझ मन पर पड़ रहा भारी।
ये यातना अब और सही नहीं जाती हैं
आँसू सूख गए चीख़ निकल नहीं पाती है
आप मेरे सर थे, सर है और हमेशा रहेगे,
आपके दिखाये पथ पर चलते रहेगें।
आपने कहा था ‘गरिमा’ तुम सब कर सकती हो,
जीवन में बहुत आगे जा सकती हूँ
मैं अपना सम्पूर्ण देने का प्रयास करती रहूँगी,
‘सर’ आपके आशीष का इंतजार करूँगी।
इसी आशा से आपकों नमन करती हूँ
चरणों में आपके क्या अर्पण करूँ
यही सोचती हूँ।
गरिमा राकेश गौतम
कोटा, राजस्थान