चिड़ियों को मौसम कभी,
बना न पाता दास ।
भरा परों में अपरिमित,
आशा बल, विश्वास।
जीव-जंतु, पौधे, विटप,
अनुकूलन में दक्ष।
परिचय देते धैर्य का,
संकटकाल समक्ष।
सिर का घटता भार कुछ,
जब कट जाते बाल।
छोटी बातें भी कभी,
बन सकतीं हैं काल।
जहाँ खड़े हो, वहाँ से
दिखता लघु आकाश।
नाप लीजिए क्षितिज को
फैलाकर भुजपाश।
बीते कल से मत डरो
करो संतुलित आज।
आगत कल है मित्र सम
उसे न समझो बाज।
नकली चित्र-चरित्र से
होता बंटाधार।
हमें गिराकर गटर में
दुष्ट बनें अवतार।
पतली गर्दन ही सखे
पकड़ पा रहे हाथ।
ऊपरवाला है खड़ा
मुस्टंडों के साथ।
उदर न सपनों से भरे
रुके न जीवन चक्र।
श्रम कौशल को छल रही
राहु-केतु गति वक्र।
-गौरीशंकर वैश्य विनम्र
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