सुप्रसन्ना
जोधपुर
मानती हूं,
ईश्वर को हमने नहीं देखा
वे अदृश्य है।
एकमात्र हमारी कल्पनाओं का
प्रतिबिंबन है।
किंतु,
हमारे कठिन क्षणों में
दवा और दुआ जब
असमर्थ हो जाते उस वक्त
हम अपने अंतर्मन से
स्तुति, स्मरण करते हैं
और तब,
उस विह्वलता के क्षण
सकल ब्रम्हांड में वह अदृश्य
ईश ही दृष्टिगोचर
और
एकमात्र हमारे अवलंबन होते हैं