पुस्तकों की पीड़ा- जसवीर त्यागी

शीशे की अलमारी में बन्द पुस्तकें उदास हैं
वे खामोशी से देखती हैं
कि उन्हीं की आँखों के सामने
कोई हड़प रहा है उनका हक़

धीरे-धीरे उन्हें
उपेक्षित और बेदखल किया जा रहा है उनके घरों से
पुस्तकों की उजास भरी दुनिया में
बढ़ रहा है सघन अंधकार

यह देख-जानकर
पुस्तकों को बहुत चोट लगती है
कभी-कभी
उन्हें गुस्सा भी आता होगा
पर वे उसे जाहिर नहीं करती
और मौन होकर
माँओं की तरह सब सहन करती रहती हैं

वे जानती हैं
कि मर्यादाओं और अनुशासन के पहरेदार
हर वक़्त उन पर पैनी निगाह रखते हैं

पुस्तकें अपने लिए
कुछ बड़ा या भव्य नहीं चाहती
बस वे अपने हिस्से का समय
और थोड़ा-सा प्यार माँगती हैं

वे घण्टों-घण्टों,महीनों-महीनों
और कभी-कभी तो
वर्षों तक बाट जोहती रहती हैं
कि कोई उनके पास आये
बैठे-बतियाये
बिताये कुछ समय उनके साथ भी
जिसे सौंप सके वे
अपने जीवन की संचित अनमोल निधि

वे चाहती हैं
कि मायावी मोबाइल
कुछ देर के लिए
उनके पाठकों को अकेला छोड़ दे
मुक्त कर दें उन्हें
रहस्यमयी और तिलस्मी संसार से

ताकि वे दिल खोलकर
बतिया सके अपनों के संग
साझा कर सकें
पुस्तकों की दुनिया के सुख-दुःख

मोबाइल है कि
आदमी को कभी
अकेला छोड़ता नहीं

-जसवीर त्यागी