मुक्तक- उम्मीदों की धूप: रूची शाही

उम्मीदों की धूप खिली है, दर्द के कुहासे हैं
इस दिल के भीतर तेरी यादों के दिलासे हैं
रूह, नजर, दिल, धड़कन सब तड़प रहे तेरे लिए
सूरत ना देखी तेरी, हम कबसे भूखे-प्यासे हैं

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दिलबर तुम्हें आना ही होगा
दर्द दिल का मिटाना ही होगा
तड़पा है बेहद यादों में दिल
सीने से इसको लगाना ही होगा

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फिर वही खता नहीं करना
हो सके तो राब्ता नहीं करना
दर्द जितने भी हैं काफी हैं
अब कोई ग़म अता नहीं करना

रूची शाही