समर्पण: नंदिता तनुजा

नंदिता तनुजा

एक भाव की
माला गूँथी
ईश्वर के नाम से
फिर कर दिया समर्पित
प्रेम-समर्पण के नाम से..

एक नारी की
विश्वास की पूंजी
परिवार के नाम से..
हर दायरे में रहकर निखरी
वो नारी प्रेम-भाव के नाम से…

परम्पराओं की
डोर से बंधी फिर उड़ी
एहसासों के नाम से..
देखी जब जग की चरखी
संभले वो त्याग के नाम से..

क्षण भर खाली
क्षण में भर जाती
खुशी-गम के फुव्वार से..
घर के आँगन की तुलसी
वो नारी जीवन के नाम से..

एक समय से लड़ती
स्वयं को वो है जीती
बेटियां बंधती प्यार से..
करुणा, विश्वास, स्वाभिमान की मूरत
एक नारी का जीवन…
निखरे हमेशा समर्पण के भाव से….

कि नंदिता अस्तित्व में समाए..
जीवन को अर्पण..
समर्पण छुपा-मन के भाव में….