ज़माना: नंदिता तनुजा

नंदिता तनुजा

बेखबर नहीं इस ज़माने में
देखा-सुना-पढ़ा पुराणों में
युगों से अपने लोग नज़र में

फिर सच बदला ज़माने में
अपने बने गैर कब भुलाने में
कठिन लगे जब मुस्कुराने में

झूठे आडम्बर बने ज़माने में
स्वार्थ छिपता बड़े पैमाने में
कर्म सोच बने यहाँ निभाने में

ओढ़ा देते कफ़न दिखावे में
अश्रु महंगा हुआ ज़माने में
सच की क़ीमत बाज़ारों में

दुनिया बसी क्यों छलावे में
अपने भी शामिल बेगानों में
नंदिता एहसास नहीं ज़माने में