तेरी चाहत में सजदे कर रही हूँ- सोनिया वर्मा

सोनिया वर्मा

ये लम्बी आहें मैं जो भर रही हूँ
तेरी चाहत में सजदे कर रही हूँ

पुरानी हो गयी हूँ आज बेशक
कभी मैं भी नया पैकर रही हूँ

बहुत ज़र है जमा, लेकिन ये मानो
कई बीमारियों से मर रही हूँ

बिता दी ज़िन्दगी पाया नहीं कुछ
अभी तक मील का पत्थर रही हूँ

उठाकर रख दिया तब मुझको पूजा
वगरना राह का कंकर रही  हूँ

झुका दी है नज़र देखा जो तुमको
अदब है ये न समझो डर रही हूँ

समझ में आ गयी दुनिया ये मुझको
कभी इस दर, कभी उस दर रही हूँ