सुजाता प्रसाद
नई दिल्ली
महकता है आंगन बेटियों के चहकने से
बेटियां गुलजार करतीं दालान हर्षातिरेक से
संस्कृति का विस्तार समेट पलती बढ़ती हैं बेटियां
संगम संवेदनाओं की, उड़न छू करती हैं उदासियां
बसंत का मंज़र भावनाओं का समंदर हैं बेटियां
अनुराग स्नेह की अविरल धारा छलकाती हैं खुशियां
पारसमणी सी परी हैं ये बेहद कोमल होती हैं बेटियां
जीवन को करती हैं रौशन ऐसी होती हैं ये दीप्तियां
दिल की धड़कन ईश्वर का सिमरन होती हैं बेटियां
विदा होके भी पास होने का एहसास दिला जाती हैं चिड़ियां