दिन-ब-दिन राजनीति गेम में
परिवर्तित होती जा रही है
ये मेरा अनुभव नहीं बता रहा है,
प्रत्येक अशांत आदमी के चेहरे की झुर्रियां बता रही है
हर तरफ कोहराम मचा हुआ है
राम, रहीम, दुर्गा, काली के नाम को बेच रहे हो
तुम बोल सकते हो, क्योंकि तुम सत्तानशीं हो
हमारी आवाज दबाने का प्रयास करते हो
फर्क बस इतना है, तुम कुर्सी पर हो
और मैं आम जनता हूं
कब तक आवाज दबाओगे
सत्ता की लालसा में हिंदू-मुस्लिम करते रहोगे
राजनीति का पैंतरा देखो कितना बदल दिया तुमने
आपस में लड़ते हो कुर्सी की खातिर जनता भाड़ में जाए
सोचो कुछ, तो सोचो, ये जो भीड़ की बरसात है
सबके हाथों में लाचारी का कटोरा थमा दिया तुमने
और तुम सत्ता में बैठे लोग सुरसा जैसे मुंह बांय हो
सरकारी वेतन से पेट नहीं भरता
कमीशनबाजी के बाजार में बिक चुके हो
तमाम बलात्कारी सत्ता में विराजमान हैं
क्या किसी ने सोचा कोई ऐसा कानून लाया जाये
जिसमें महिला शोषण अपराध में व्यापत
किसी भी व्यक्ति को चुनाव लड़ने का अधिकार न हो
मैं किसी एक दल की बात नहीं कर रही
सबको कहना चाहती हूं
क्या ऐसे नये कानून के लिए तुमने आवाज़ उठाई
आए दिन वोट के समय ज़मीन पर गिर जाते हो
और वोटिंग के बाद, आए दिन बहार के
ये जो तुम्हारी मुट्ठी भर उत्तेजना हैं
ना तुम्हें एक ना एक दिन ले डूबेगी
प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश