शुभ दिन दो अक्तूबर को जन्मे,
प्रिय शास्त्री लालबहादुर थे।
माँ रामदुलारी और पिता
शारदा प्रसाद भावातुर थे।
थे पले अभावों में ‘नन्हे’
जब पिता जी स्वर्ग सिधार गए।
नाना-नानी घर पले-बढ़े
शिक्षा ने खोले द्वार नए।
असहयोग आंदोलन में कूदे
वे साथ हो लिये गाँधी के।
भारत छोड़ो आंदोलन में
लक्षण थे भीषण आँधी के।
अँग्रेजों की सही यंत्रणाएँ
जेलों में दुख झेले अपार।
जीवन शैली का एक सूत्र-
सादा जीवन, उन्नत विचार।
वे सत्य, श्रमी, अनुशासन प्रिय
आदर्शों की थे दिव्य मूर्ति।
पत्नी ललिता शास्त्री दुख में
साहस की करतीं रहीं पूर्ति।
कोई भी कार्य नहीं छोटा
जनसेवा ही है सर्वोपरि।
उर कोमल पर संकल्प शिला
जिसको न डिगा पाता था अरि।
चाचा नेहरू की मृत्यु बाद
प्रधानमंत्री पद उन्हें मिला।
सुन ‘जय जवान-जय किसान’ घोष
मुरझाया भारत पुनः खिला।
संपूर्ण देश परिवार समझ
स्वावलंबन का शुचि भाव भरा।
जब ताशकंद में तजे प्राण
तब अतिशय रोए गगन-धरा।
दिल्ली में उनकी है समाधि
कहलाती है जो ‘विजय घाट’।
वह लालबहादुर था सपूत
शोभित जो भारत माँ ललाट।
गौरीशंकर वैश्य विनम्र
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