अनामिका गुप्ता
अध्यापिका, सपोटरा
माँ ओ माँ, माँ ओ माँ
तुझसे ही मेरा जहां
इठलाऊं मैं पकड़ के आंचल
हैं कोई ऐसा और कहां
ममता की छांव मिलेगी हमको
बस तेरे बिन और कहां
गहरे दुख के छाए अंधेरे
हर तरफ है गमों के तूफां
शीतलता वहीं मिल जाती
आशीष मिल जाए तेरा जहां
हर आंसू पी लेती है
घुट घुट के जी लेती है
आंच ना आने देती हम पर
सब कुछ खुद सह लेती है
तुझको नहीं लिख पाऊंगी
ना शब्दों में कह पाऊंगी
तेरे आगे ईश्वर भी झुकता
अब इससे ज्यादा क्या करूं बखां
माँ ओ माँ, माँ ओ माँ
तुझसे ही मेरा जहां