अठखेलियां करती जलधारा को,
सब अपने में समेटते हुये सरिता बनते देखा है
तब तब मैंने एक लड़की को औरत बनते देखा है
शरारतों का दामन संभाल नहीं पाती थी वो
उसे सर पर जिम्मदारियों की ओढ़नी ओढ़ते देखा है
तब तब मैंने एक लड़की को औरत बनते देखा है
अल्हड़ सी जवानी को,
जब परिपक्वता से सजते देखा है
तब तब मैंने एक लड़की को औरत बनते देखा है
नजरों की तेज कटार को
हया से झुकते देखा है
तब तब मैंने एक लड़की को औरत बनते देखा है
अपने दीवाने को उंगलियों पर नचाने वाली को
पति के आगे पीछे नाचते देखा है
तब तब मैंने एक लड़की को औरत बनते देखा है
इश्क की चिंगारी को
मोहब्बत में सुलगते देखा है
तब तब मैंने एक लड़की को औरत बनते देखा है
बात बात पर रूठने वाली को
जब स्वयं मनते देखा है
तब तब मैंने एक लड़की को औरत बनते देखा है
तर्क करने वाली को जब
बच्चों की नजर उतारते देखा है
तब तब मैंने एक लड़की को औरत बनते देखा है
मुँहफट स्वभाव था उसका
उसे ही जब चुपचाप ताने सुनते देखा है
तब तब मैंने उस लड़की को औरत बनते देखा है
जब किसी मकान को घर बनते देखा है
तब तब मैंने एक लड़की को औरत बनते देखा है
पाने की चाहत को
अनुराग में बदलते देखा है
अधिकार को समर्पण में बदलते देखा
तब तब मैंने एक लड़की को औरत बनते देखा है
सपनों के आसमान में उड़ने वाली को
जब यथार्थ की धरती पर चलते देखा है
तब तब मैंने एक लड़की को औरत बनते देखा है
उमंग की सुबह को
थकान की शाम में ढलते देखा है
तब तब मैंने एक लड़की को औरत बनते देखा है
स्वयं तक सीमित रहने वाली कली को
सबके लिये सुगंध बिखेरते हुये
कुसुम बनते देखा है
तब तब मैंने उस लड़की को औरत बनते देखा है
हिरणी सी उसकी चाल को
गजगामिनी बनते देखा है
तब तब मैंने उस लड़की को औरत बनते देखा है
नाराजगी की ग्रीष्म ऋतु के बाद
प्रेम की वर्षा बनते देखा है
तब तब मैंने एक लड़की को औरत बनते देखा है
राधा के रास को
रुक्मिणी की आस बनते देखा है
तब तब मैंने एक लड़की को औरत बनते देखा है
मीना कुमारी
शालीमार बाग, दिल्ली