इन तूफानों, इन लहरों में,
जब डूब-डूब मन होता है,
तब फूट-फूट कर रोता है
अपनो के कंधे पर अपनो की-
अर्थी देख कर सोता है,
तब फूट-फूट कर रोता है
जब कुर्सी की कंगाली में,
अपना अपनों को खोता है,
तब फूट-फूट मन रोता है
इतिहास के पन्नों की खातिर ,
जब रक्त से घर कोई धोता है,
तब फूट-फूट मन रोता है
सिर पर ताजो की चाहत में,
जब देश को रक्त डूबोता है,
तब फूट-फूट मन रोता है
अपनी महानता की खातिर,
कोई गद्दारी जब बोता है,
तब फूट-फूट मन रोता है
अपनी करनी के श्मशान,
अपना बच्चा जब सोता है,
तब फूट-फूट मन रोता है
कैसे इस मन को इस पीडा से-
अलग करूँ, कोई राह नहीं
इस कुर्सी-पदवी-शोहरत की,
मुझको तो कोई चाह नहीं
इस देश की पीडा अपनी है,
मत कहना मुझमे आह नहीं
रक्तरंजित कोई घर हो
मत सोचो, यहाँ कराह नहीं
अर्चना श्रीवास्तव