Friday, September 27, 2024

न कोई ख्वाब और न नींद: रूची शाही

रूची शाही

घृणा वो शब्द है
जो अपनी गलतियों के लिए
खुद से नहीं होती
परंतु दूसरे से जरूर हो जाती है

इंतजार करती आँखें
पत्थर की हो जाती हैं
फिर न उनमें इंतज़ार बसता है
न किसी का अक्स
न कोई ख्वाब और न नींद

गलतियां इंसान की फितरत होती है
जब तक माफी मिल रही होती है
वो गलतियां कहलाती हैं
जब माफी न मिले तो
उसी वक्त वो गुनाह बन जाती है

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