Saturday, December 7, 2024

संस्कारों का लिहाफ़: रूची शाही

रूची शाही

हम औरतें है
हम अपनी जिंदगी एक ऐसे घर में काट देती हैं
जहां हमारे लिए प्यार न हो, सम्मान हो न हो
फिर भी हम उसी घर में टिके रहना चुनती है।

चिड़िया चाहे जातनी मर्जी उड़ ले
शाम को उसे भी लौटना होता है
घोंसले में अपने बच्चों के पास…
पर लौटने के क्रम में
उसे मिल जाए कोई जिससे बातें करके
अच्छा लगता है हो
सुकून मिलता हो
तो वो बस लौटते-लौटते बातें कर लेती होगी
कुछ कह लेती होगी, सुन लेती होगी

संस्कारों में लिपटी औरतें भी
ऐसी ही होती हैं
नहीं ढूंढ सकती कोई ठिकाना
वो अपने घर में दम तोड़ना
ज्यादा पसंद करती हैं आज भी

औरत बुद्ध नहीं हो सकती कि
घर को त्याग करके ज्ञान की खोज में निकल जाए
औरतें जानती है कि भटकने से मंजिल नहीं मिलेगी उन्हें
हां उनकी किरदारकशी जरूर की जाएगी

उन्हें संभलना भी है और चलना भी है
जिंदगी बंजर भी हो जाए
तो संस्कारों के लिहाफ़ में लिपटी औरत
बाहर निकलने का सोचने में सौ साल लगा देंगी

हां पर सारे रिश्ते टाइमपास नहीं होते
ना ही उन्हें अफेयर कहना उचित होगा
कुछ रिश्ते बेनाम होते है बस
उनमें होता है सम्मान, परवाह और जरा सा प्रेम
पर बहुत छोटी उम्र लेकर जन्म लेते है ऐसे रिश्ते
क्योंकि उनका मर जाना
पहले से ही तय होता है

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