सुधियों की गलियों ने मिलकर, पत्र तुम्हारे नाम लिखा
बचपन के वो दिवस सलोने, धाम हमारा ग्राम लिखा
लिखा कुएँ का ठंडा पानी और नीम की छाँव घनी
माटी का वो भव्य महल भी, उस पर छज्जी एक बनी
अमियाँ-इमली, बेर-निबौरी, जामुन का गोदाम लिखा
गिल्ली-डंडा, छुपन-छुपाई, चोर-सिपाही, खो-खो भी
लिखा सभी कुछ है इस खत में, दिखा वहाँ पर जो-जो भी
घुँघची-घोंघे, पंख, अरंडी, कौड़ी को इनआम लिखा
भानुमती का भरा पिटारा, दादी की हर एक कथा
आपस की वो हँसी-ठिठोली, नजर न आई तनिक व्यथा
कचरे से भरपूर टोकरा, मिलता था बिन दाम लिखा
लिखी धूल की दरी मुलायम, बम्बा, ताल, तलैया भी
धरी मूँड़ पे जेठ-दुपहरी, शीतल वो पुरवैया भी
खिली ज्वार-सी मित्र मंडली, जब तुम गिरे धड़ाम लिखा
चना-मटर की खेती लिख दी, सरसों की चौपाल लिखी
महुआरी की महक लिखी है, झूले वाली डाल लिखी
लिखा स्वयं को बेगम मितवा, तुमको निरा गुलाम लिखा
स्नेहलता नीर