धूमिल हो चुकी हैं
दीवार पर टंगी तस्वीरें
लेकिन चमकीली यादों को बिखेरती हुई
दे रही हैं बीते पलों की गवाही
और मुझसे कह रही हैं बार-बार
सुनों मैं कहीं छूट गयी हूँ
संदेहात्मक दृष्टिकोण लिए
मेरे अन्तर्मन में भी
उठ रही हैं चट्टानी हलचलें
अतीत के झरोखों से
झाँकता हुआ मेरा रिक्त अंतस
सजीव कला का कर रहा है चित्रण
कह रही तस्वीर मुझसे
क्या? अब होती है वह सुबह
जब तुम हमें लपेट लेती थी
अपनी बचकानी बाहों में
धूप में गुनगुनाते हुए पानी भरी बाल्टी
जिसमें तुम सजाती थी हजार सपने
क्या? अब तुम गले के सायरन का
इस्तेमाल नहीं करती
जो पिता के सिराहने किया करती थीं
सूरज की लालिमा से अपनी चुन्नी रंगती हो या नहीं
अब तुम मुझसे सूरज का पता भी नहीं पूछती
और चाँद पे घर बनाया कि नहीं
अपने केशों को
जतन करने में गवां देती थी
दिन का एक पहर
समय के पटल पर अब नहीं रहे
तुम्हारी ऊंगलियों के निशान
बस रह गयी राम कहानी अतीत के पन्नों पर
प्रार्थना राय
ग्राम पोस्ट- गौरा
जनपद- देवरिया, उत्तर प्रदेश