खतों को जला दिया तस्वीर हटा दी
जिंदगी से उसकी हर निशानी मिटा दी
मग़र हर लम्हा उसी का देता पैगाम रहा,
उसे भुलाने का हर तरीका नाकाम रहा
बहुत कोशिश की, कई राह अपना लिया
मयखाने जाकर सागर तक उठा लिया
मगर ख्यालों में उसका आना आम रहा,
उसे भुलाने का हर तरीका नाकाम रहा
हसीनों की गलियों में दिल बहलाया खूब
मिले वहां कई हमदम, सनम, मेहबूब
मग़र दिल उसी का बस लेता नाम रहा
उसे भुलाने का हर तरीका नाकाम रहा
ये ख्याल लिये छोड़ा था उसका शहर
रहकर दूर उससे जाऊंगा उसे बिसर
पर दिल में कहीं उसकी यादों का धाम रहा
उसे भुलाने का हर तरीका नाकाम रहा
संजय अश्क बालाघाटी
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