घर के बगैर जिंदगी क्या होती है यह बात उनसे पूछो जरा
जिनकी सड़कों के किनारे अक्सर जिंदगी बसर होती है
सुकून की तलाश में यूं तो दुनिया घूम आते हैं लोग मगर
उस सुकून की प्यास तो घर में आकर ही तृप्त होती है
दोपहर की तपन में जब पांव थक जाते हैं बढ़ने लगते हैं
अनायास ही क्योंकि घर के पास होने की उम्मीद होती है
घर की चौखट इस कदर हमारा इंतजार किया करती हैं,
जैसे मां अपने बच्चों की खातिर, आंचल पसारा करती है
घर की दीवारें बचपन की यादेंऔर जवानी समेट रखती हैं
आने वाले भविष्य के सपनो की, दुआएं किया करती हैं
यूं तो ईंट पत्थरों से घर नहीं बना करते हैं, घर वह है जहां
इंसानी रिश्तों में एहसासों की, अक्सर शमा जला करती है
पूर्वजों से मिली इस धरोहर का कुछ ख्याल कर लेना
क्योंकि यह विरासत सभी को कहां नसीब हुआ करती है
सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश