संजय अश्क
बालघाट, मध्य प्रदेश
संपर्क- 9753633830
जितनी बार टूटूंगा निखर जाऊंगा
मैं शीशा नहीं जो बिखर जाऊंगा
मुश्किलों ने मुझे जीना सिखाया है
हालातों ने जख्म सीना सिखाया है
जितना डुबाओगे उतना उभर जाऊंगा
तकलीफों ने हँसने का हुनर दिया है
हादसों ने सफर और बेहतर किया है
जरा भी न सोचना की मैं ड़र जाऊंगा
कांटो पे चल के आगे बढ़ना आता है
दीया होकर तूफां से लड़ना आता है
मैं अंधेरों को रोशनी से भर जाऊंगा