अनामिका गुप्ता
होगी फिर वही मान मनवार
प्यार मिलेगा मुझे बेशुमार
लाल चुनरिया ओढ़े मैं इठलाऊंगी
घर घर पूजी जाऊंगी
बीतेंगे यह दौर तो फिर?
वही कुलटा, बांझ के ताने
भेंट चढ़ेगी अग्नि की
क्यों दहेज नहीं तू लाई
होगा कहीं दुष्कर्म, बलात्कार
सरेआम
लूट ली जाऊंगी
जीते जी ना रहूंगी जिंदा
अस्मत लूटकर भी
निर्लज्ज घूमेगा वहशी दरिंदा
होगी लहूलुहान आत्मा
कब होगा खात्मा?
कब होगा सुरक्षित मेरा स्वाभिमान?
कब न्याय मुझे मिल पाएगा?
जग में मिलेगा कब सम्मान?
कलम पूछती है मेरी तुमसे
कब मिलेगा नारी को स्वतंत्र आसमां?