यूं तो हया भी है और नज़ाकत भी है मुझमें
कहते सुना लोगों को कि शराफत भी है मुझमें
खुली किताब सा मेरा मन और उस का एक-
एक हर्फ इतनी सफाई से लिखा गया मुझमें
जाने क्यूं लगा ऐसा कि!वाकई आज जो इस बेदर्द
दुनिया और दिखावे के चकाचौंध में जीने वाले उन
अमानुषों को जो चाहिए था सिर्फ और सिर्फ उसी
हुनर की ही शायद कहीं कमी रह गई थी मुझमें
अपनी फिक्र में तो दुनिया जीती है पर! खुद से ज्यादा
औरों की फ़िक्र में जीना यही अंदाज अपना था मुझमें
रास नहीं आया हमारा यूं किसी के लिए मिट जाना,
क्या करें जब उस खुदा ने गढ़ दिया ये हुनर जो मुझमें
बहुत शुक्रगुजार हूं उस खुदा की, कि ऐ खुदा! तूने
शायद कुछ सोच समझकर ही मुझे इस खूबी से
नवाज कर इस जहान में भेजा, मगर! गिला इस बात का है
समझ सकें जो तेरी दी गई नेमत वो तूने साथ नहीं भेजा
सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश