आओ मित्रों संग में मेरे, तुम्हें शहर बनारस घुमा कर लाऊं
घाट बनारस के ले जाकर तुम्हें वह गंगाजल पिलाकर लाऊं
काशी शिव की नगरी में चलो नंदी जी के दर्शन करवा लाऊं
मांगोगे जब भी कोई मन्नत तुम, उस तक वह मैं पहुंचाऊं
फिर काशी के निर्मल घाटों पर नंगे पांव तुम्हें घुमाकर लाऊं
सौंधी-सौंधी महक उड़ाती चाय फिर मैं तुम्हें पिलवा लाऊं
सुबह सुनहरी भक्ति रंग में डुबोकर शाम को मोक्ष दिलवा दिलवा लाऊं
गंगा जमुना तहजीब इसकी ईश्वर प्रेम में चलो डूबा कर लाऊं
यह भक्ति है, यह प्रेम है, यही धर्म संस्कृति की भी रक्षक है
प्रेम की शाश्वत कथा सुनाते उन अस्सी के घाट घुमाकर लाऊं
दशमेशवर घाट की शोभा न्यारी सूरज जिसके ललाट दिखलाऊं
हर गलियां जिसकी मंदिर जैसी खोल मन के कपाट तुम्हें बतलाऊं
यह नगरी पुण्य की वह नगरी इसका प्रमाण तुम्हें मैं दिखला लाऊं
करवाकर दर्शन इसके तुम्हारी आत्मशुद्धि और पापों से मुक्ति करवाऊं
सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश