राधा कृष्ण के प्रेम का यूं तो नहीं कोई विस्तार
मानों तो सच्चे प्रेम का, यही है बस आधार
कहने को मनमीत ये दोनों एक दूजे के ह्रदय में बसते थे
किंतु दुनिया की रीत खातिर ही, दोनों कंटक पथ पर चलते थे
गौलोक से आए दोनों दुनिया को देने प्रेम का ज्ञान
सच्ची प्रीत को पाना है तो मित्रों सदा रहे यह मन में भान
उन दोनों की प्रीत ने दुनिया को, कृष्णक बताया था
यदि कांटा कहीं लगा राधा को, कृष्ण के नख में वो दर्द समाया था
दोनों की निश्चल, पावन प्रीति की, सौगंधे खाई जाती थी
जब-जब बंसी बजी मोहन की, राधा जी मगन हो दौड़ी आती थी
ना ही कोई बंधन था नाम का न हीं स्पर्श और लाचारी थी
उन दोनों की प्रीत पर ही तो यह दुनिया वारी-वारी जाती थी
क्या जाने दुनिया प्रीत की खातिर दोनों ने क्या त्याग किए
ना पाकर भी पा गए एक दूजे को न्यौछावर अपने भाग्य किए
आज उनकी यह पावन प्रीति हम सभी को सिखलाती है
प्रेम संयम,त्याग तपस्या जिसमें राधा कृष्ण और कृष्ण राधा हो जाती है
उनके जैसा निश्छल प्रेम तो मित्रों नहीं कोई कर पाएगा
यह कलयुग है कलयुग में तो, स्वार्थ इसके आड़े अवश्य आएगा
लेकिन यही कामना मेरी मिले कभी जो सच्ची प्रीत
प्रेम करो तो उन जैसा सा करना एक दूजे में हो आत्मविलीन
सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश