वंदना सहाय
जन्मतिथि- 29 नवंबर
शिक्षा- स्नातक (प्रतिष्ठा, प्राणी शास्त्र), स्नातकोत्तर (प्राणी शास्त्र)
लेखन विधा- कहानी, लघुकथा, कविता, हायकु, ग़ज़ल, क्षणिका, व्यंग्य एवं बाल-साहित्य
प्रकाशन- पुस्तक ‘बूँन्द-बूँन्द प्रतिबिम्ब’ प्रकाशित, दो अन्य पुस्तकें प्रकाशनाधीन।
भाषा स्पंदन, यथावत, अंतिम जन, परिकथा, सरस्वती सुमन, राजभाषा विस्तारिका, साक्षात्कार, नई दुनिया, जनसत्ता, लोकमत, दैनिक भास्कर, हितवाद (अंग्रेजी) के साथ अन्य प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन।
अनेक स्तरीय साझा संकलनों में भागीदारी।
यूट्यूब पर कुछ ग़ज़लों का गायन कलाकारों द्वारा।
हिन्दी के साथ अंग्रेजी में भी लेखन। अंग्रेजी की रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं एवं अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित।
सम्प्रति- साहित्य सृजन
धुँधली पड़ गयीं हैं नज़रे उसकी
मोतियाबिन्द से
याद आने लगतीं हैं उसे वे थपकियाँ
जो समय दिया करता था उसकी पीठ पर
अपने कोमल हाथों से
उसे सुलाने के लिए
तब वह छोटी थी
और तुरंत सो जाया करती थी गहरी नींद में
उन थपकियों से
अब उसे इस उम्र में
समय के थपकियाँ देते हाथ
लगने लगे हैं कठोर-से
अब उनसे नहीं आती है नींद
उसे घेरने लगतीं हैं अनंत चिन्ताएँ
जैसे बिन बुलाए भी दे जाता है डाकिया
दुख-भरी पाती
वह पढ़ने लगती है
माँ की यादों में जाकर
उसके चेहरे पर पड़ी
आशंकाओं की असंख्य लकीरें
समझने लगी है
जागती आँखें और दुखते घुटनों का
युगल-बंधन
पहचाने लगी है
माँ की फीकी मुसकान और चिर थकान को
समय के साथ
उसने भी काफी दौड़ लिया
फिर थक कर एक दिन जब वह
आईने के सामने केश सुलझा रही थी
तो आईने में देखा अपनी माँ को
रजत केश फैलाए