मित्रों! संदेशों का वह दौर भी क्या दौर हुआ करता था
पाने को अपनों की खबर मन व्याकुल हुआ करता था
पंछियों के द्वारा संदेशा पहुंचाते थे इस तरह फिर
अपनी-अपनी उस वक्त सब खैरियत पहुंचाते थे
माना पहुंचने में उसे एक अरसा लग जाता था
फिर भी उसकी बाट में मन धीरज धर लेता था
फिर खाकी वर्दी वाले डाकिया बाबू का दौर आया
रे संदेशा नानी और पहुंचाने वाला भगवान कहलाया
जिनकी खबर पाने को ये आंखें बरसों रोती थी
ले आए अपनों की पाती बस यही बाट जोहती थी
वह दौर भी मित्रों! कितना अजब दौर होता था
हर रिश्ता दिल से दिल के कितने करीब होता था
उस वक्त यदि मनमुटाव भी हो तो इंतजार होता था
क्योंकि हर रिश्ता समय के साथ परिपक्व होता था
बहन लिफाफे में रखकर राखी अपना प्रेम भेजती थी
भाई की सुनी कलाई उसे पाने की राह देखती थी
आज यह आलम है दोस्तों ऑनलाइन राखियां बंधती
इस युग की संदेश प्रक्रिया जाने क्यों दिलों को खलती है
सच पूछो तो वह दौर बेशक पुराना माना जाता था मगर
उसमें लोगों लिखकर अपने जज्बातों को दर्शन आता था
मैं अपना आत्मिक प्रेम और अपनेपन की खुशबू होती थी
बरसों बाद मिलें उसे जुदाई को सहने की ताकत होती थी
कहने को तो वह संदेश पत्र अंतरदेशीय पत्र कहलाता था
लेकिन लिखते लिखते उसमें स्थान कम पड़ जाता था
वह इंतजार भी क्या रंग दिखलाता था प्रेम, विश्वास की,
पराकाष्ठा के पलों में केवल आनन्द ही आनन्द आता था
आज इस आधुनिक युग में तकनीकी में नाम कमाया है
आज मनुष्य केवल और केवल स्वयं में ही सिमट आया है
एंड्रॉयड का ऐसा नशा छाया है इंसान को इंसान भुलाया है
सेल्फी, व्हाट्सएप और एफबी ही उसने संसार बसाया है
सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश