डॉ निशा अग्रवाल
जयपुर, राजस्थान
दिल कहता है बार बार मैं, शिक्षक बन जगत में आऊँ
गलियों में खेले बचपन को, भविष्य के ख्याबों से सजाऊँ
अ से ज्ञ तक बोध कराकर, अनपढ़ से ज्ञानी में बना दूं
काली-अंधियारी, दीवारों पर, उजियारे की मुहर लगा दूं
खुद जलकर बालक जीवन को, रोशन कर रास्ता दिखला दूं
जोश जगाकर बालक मन को, डगर चाँद की में पहुँचा दूं
कोरे कागज पर स्याही से, रंग बिरंगी छाप छोड़ दूं
अक्षर ज्ञान का पाठ पढ़ाकर, निरक्षर से अधिकारी बना दूं
जीव जगत की रचना बताकर, सेहत का मर्म समझा दूं
विज्ञान के रहस्य बताकर, वैज्ञानिक, डॉक्टर मैं बना दूं
संचित ज्ञान के संचारण से, मैं एक नई किताब बना दूं
सही गलत, अच्छे और बुरे की, मैं तुझको पहचान करा दूं
सूरज चाँद नदी पहाड़ सब, क्या देते हैं ये समझा दूं
घर-परिवार, समाज, गॉव और, देश-हित का महत्व बता दूं
सुख में संयम दुख में धीरज, हंसकर में जीना सिखला दूं
रंग बिरंगे जीवन में मैं, जीने का उद्देश्य बता दूं
ज्ञान सरोवर में उड़ने को, आत्मविश्वास के पंख लगा दूं
नौसिखिए परिंदे को मैं, मस्त गगन का बाज बना दूं
ज्ञान सुमन अनुपम माला से, मैं तेरा जीवन महका दूं
जटिल राह मुश्किल बेला में, मैं मेरा आँचल फैला दूं
तेरे हर मुश्किल सवाल का, मैं ही सोल्यूशन बन जाऊं
कभी प्यार से, कभी डांट से, कठिन पाठ को सरल बनाऊं
जीवन के सारे दुख हर कर, खुशियों की मैं फसल उगाऊँ
अजानी, अनजानी को मैं, ज्ञान राग का पाठ पढ़ाऊँ
जीवन के हर मूल्य बताकर, सफल मार्ग तुमको दिखलाऊँ
निस्वार्थ भाव से शिक्षा देकर, राहों की रहबर बन जाऊँ