अपनी सामर्थ्य से अधिक ऊपर
खर्च मत करना कर्ज ले ले कर
सच कहा है किसी ने सहमत हूं,
पांव फैलाओ जितनी हो चद्दर
दोस्ती से बड़ा नहीं रिश्ता,
दोस्त ही देते हैं दगा अक्सर
सिर्फ दो शब्द प्यार के बदले,
टूट जाते शरीफ लोग अक्सर
कितना जीवट है हँस रहा अब भी,
आके आफत खड़ी हुई सर पर
हद से ज्यादा जो होते हैं ज्ञानी,
फेल हो जाते हैं वही अक्सर
मैंने जो कुछ कहा है सच ही कहा
सच बयानी में है भला क्या डर
समीर द्विवेदी नितान्त
कन्नौज, उत्तर प्रदेश