वर्तमान में जमाने का चलन न पूछो साहिब!
आज जहां मानव, मानवता की लड़ाई लड़ रहा है
वहीं आधुनिक सोच का प्राणी उसे
अपने ही कर्मों से इस कदर शर्मसार कर रहा है
कहा जाता था कि आज अच्छा करोगे
तुम्हारा कल अच्छा होगा किन्तु!
वह तो आपने आज को ही मिटाकर
न जाने कितने पापों की गागर भर रहा है
रिश्ता! हां यही रिश्ता साहिब!
उसे अब बोझ लगने लगा है
जमाने की इस बदहवास हवा में उन रिश्तों को
उन मानो वह कपड़ों सा बदल रहा है
कहने को तो संस्कार और संस्कृति का पाठ
पढ़ाता है औरों को
किन्तु! स्वयं के अन्दर छिपा बैठा रावण न जाने!
कितनी सीताओं को हर रहा है
यूं तो हम भी आधुनिकता की
सुनामी के शिकार होने को मजबूर हैं
बचकर जाएं भी तो कहां,
चारों तरफ अब बस यही प्रपंच चल रहा है
दम घुटता है इस
झूठ छल-कपट और दिखावे की सोच से
कहने को जिंदा हैं हम
किन्तु पल-पल हमारा वजूद मर रहा है
सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश