बस एक बार तुम्हें छू कर
देखने का मन है मेरा
मैं चाहती हूं महसूस करना तुम्हें
तुम कहीं रुई से भी मुलायम तो नही
मैं चाहती हूँ जी भर देखूं तुम्हें
घंटों तुम्हारी चमकती शरारती आंखों में
कहीं ये आंखें किसी दर्द से
या मेरे बोले किसी कड़वे शब्द से
पनियाई तो नहीं हैं
एक बार तुम्हारी गंध को
उतारना चाहती हूँ मैं अपनी सांसों में
कहीं ये खुश्बू नसों में उतरकर
हृदय की धड़कनों को बढ़ाती तो नहीं है
मैं चाहती हूँ रखना तुमसे
एक निष्पाप और पवित्र सा रिश्ता
सिर्फ और सिर्फ उतना सा ही
जितना प्रसाद में तुलसी दल का होता है
रूची शाही