रूची शाही
मेरा मन चाहता था तुमसे…
कभी अचानक रात को सोते हुए सीने से लगा लेते मुझको
कभी अपनी करवटों के साथ मुझे भी उठा लेते
और कभी मुंह फेर के नहीं सोते मुझसे
कभी लेके जाते मुझको पानीपुरी के ठेले पे
और खिलाते मुझको ढेर सारी पानीपुरी और
रखे रहते अपने हाथों में पानी का बॉटल भी
पूछते रहते तीखा ज्यादा तो नहीं लग रहा ना
मेरा मन चाहता था तुमसे…
कि समझ जाते मेरे गुस्साने की वजह पहले ही
मेरी नाराजगी को रखते अपनी पलकों पर
और याद करके रख लेते कि उसे ये बात बिल्कुल पसंद नहीं
मेरा मन होता था कि तुम पहनते मेरी पसंद के कपड़े
तुम्हारे शूज तक नहीं मिलते तुम्हें मेरे बिना
और घर से निकलते हुए चूमते मेरे माथे को
पृथ्वी के माथे को चाँद ने छू लिया हो जैसे
मेरा मन चाहता था तुमसे…
याद रहती तुम्हें मेरे पीरियड्स की हर डेट
दुलारते मुझे वैसे ही जैसे मैं कोई छोटी सी बच्ची
लाते मेरे लिए मेरी पसंद के मिल्की बार चॉकलेट्स
और खिलाते मुझे अपने हाथों से बनाकर ऑमलेटस
कुछ ख्वाहिशें जो हमेशा अधूरी रह गई मेरी
नहीं चाहती उनका हिसाब मैं तुमसे
पर इतना बता दो मेरा वो मन कहां गया
जो चाहता था कुछ तुमसे….