जब तक चुनौतियों को नहीं स्वीकारोगे
तब तक युग निर्माण नहीं कर सकोगे
मानवता की मान्यता को प्रथम संज्ञा देकर
अत्याचारी बिन्दुओं के अजगर स्वरूप को
क्रान्ति की पादुका से कुचलकर
एक पृथक नव निर्माण करना होगा
तभी युग तुम्हें मानव रूप में स्वीकारेगा
नव कविता का सृजन करके
भारतवासियों के हृदय में
राष्ट्रवादी प्रावधानों के
पाठ को ज्ञात कराना होगा
और विरोध के नशे में मचलती हुई नागिन को
विधि के सख्त नियमों के पिटारा में बदं करना होगा
निष्ठा का आवरण कर
हम सभी को संकल्पित होकर
भूख प्यास और निजी आवश्यकताओं की परवाह न करके
राष्ट्र के लिए आगे आना होगा
स्वयं तथा दूसरों को एक सूत्र में पिरोकर
संगठित केन्द्र स्थापित करना होगा
आदमक़द जीवन जीने वालों के मस्तिष्क में
पनप रही भारहीन वृत्तियों से हमें उन्हें मुक्त कराना होगा
वसुधैव कुटुम्बकम की परिभाषा पर उँगली उठाने वालों को
भरमाती हुई ध्वनि से बाहर निकाल कर
ये बताना होगा कि एक जयचंद व एक मीर जाफ़र
के सहारे अलगाव का विष पसारने वालों
तो सुनो हमारी माँओं ने जने हैं
सैकंडों भगत सिंह, सुभाष, आजाद, बिस्मिल
हमारी मिट्टी में रचा है मनु का खून
और यहां की बालाओं की पायलों के छनक से
कांँपता है आकाश व काजल की टशन से
सिहर जाता है ज्वालामुखी
पीड़ादायी संगत का त्याग कर
बिखरी हुई सच्चाई को एकत्रित कर राष्ट्रीयता से जुडो़
तुच्छ बुद्धि के साथ भटकाव सा जीवन तुम्हारा
राह चुनो मानवता की, परिणाम सुखद होगा
धर्म और जाति के संस्करण पर
कब तक बेबुनियादी मुकदमों की सिफारिश करते रहोगे
प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश