घिर-घिर आए बादल
बदली ने मल्हार गाई है
घन मेघों की श्यामल-श्यामल
ये कजराई है
रिमझिम-रिमझिम बूँदें बरसतीं
झूम के बरखा बहार आई है
ओढ़ के धानी चुनरिया
धरती भी हर्षाई है
सज गए बागों में झूले
हाथों में मेंहदी रंग लाई है
मन-नूपुर थिरक उठा रूनझुन
बूँदें खुशियाँ लेकर आई हैं
धूप लिपी धरती सुनहरी
प्रीत झड़ी से तर आई
बादल संग चलता है चंदा
दामिनी भी है मुसकाई
बलखाती बहती है नदिया
मंजरी कलियों सी खिल आई है
जूही, चमेली,बेला से
महक उठी फुलवारी है
सुषमा बिखरी डाली-डाली
भरी सुगंध की प्याली है
कितनी इसकी शोभा न्यारी
अंग-अंग को पुलकाई है
तृप्त हुई धरा कण-कण
छाई हरियाली है
प्यास बुझी रज-रज के
यॆ पावस की तरूणाई है
पीहु-पीहु करता पपीहा
पिक ने सुर-सरगम सजाई है
घिर-घिर आए बादल
सुजाता प्रसाद
नई दिल्ली