है सफर लंबा मुसाफिर बनना तय है
ये मादक आँखें काफिर बनना तय है
मेरा सफर तो जैसे-तैसे कट जाएगा
ये सवालिया हुस्न हाफ़िर बनना तय है
तेरे बारे में मुझे कहाँ, किससे खबर हो
लगता है कूचे में साफिर बनना तय है
मेरी दीवानगी का कैसे होगा फ़ैसला
मुमकिन है खुद का नाज़िर बनना तय है
यूँ ही दूर-दूर से गुफ़्तगू करना मुश्किल है
अपनी मुलाक़ात में हाज़िर बनना तय है
दिल के बदले दिल, ये सौदा मुकम्मल है
‘उड़ता’ तेरे इश्क़ में ताज़िर बनना तय है
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल ‘उड़ता’
झज्जर, हरियाणा-124103