तेरी कशमकश का भी,
मैं जवाब दे दूंगा,
आज अल्फाज़ नहीं है,
कल जवाब दे दूंगा
सब्र कर और सदमा न दे,
सम्भल जाने दे हिसाब दे दूंगा,
सिसकियों के कुछ ही पल है,
लफ्ज़ नहीं पूरी किताब दे दूंगा
ये अश्क कहां तक ले जाएंगी,
इनके धारों को भी इंतखाब दे दूंगा,
तू नहा ले आज बहती धारों में,
वक्त आने दे बेनकाब कर दूंगा
-जयलाल कलेत
रायगढ़ छत्तीसगढ़,