तकनीक में विभिन्न नवाचार करने के साथ एमपी ट्रांसको ने आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर नयागांव जबलपुर में आयुर्वेद औषधियों को बढ़ावा देने एवं इसके प्रति जागरूकता के उद्वेश्य से पहली बार एक बहुउपयोगी औषधीय वाटिका विकसित की है। कोविड-19 के बाद आयुर्वेद औषधियों की महत्ता समाज में पुर्नस्थापित हुई है जिसको समझ कर एमपी ट्रांसको के नयागांव जबलपुर स्थित स्काडा कन्ट्रोल सेंट्रल में प्रयोगात्मक तौर पर पहले जबलपुर में इसे विकसित किया गया है।
कार्यपालन अभियंता डॉ हिमांशु श्रीवास्तव ने मध्य क्षेत्र राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड आयुष मंत्रालय भारत सरकार एसएफआरआई जबलपुर के सहयोग से स्काडा परिसर में एक विशेष स्थान चिंहित कर इसे विकसित करने में सफलता प्राप्त की। एमपी ट्रांसको में अपनी तरह की इस पहली अद्भुत वाटिका में फिलहाल 28 ऐसे दुर्लभ औषधीय पौधे रोपित कर विकसित किए गये हैं, जो विभिन्न जटिल बीमारियों के उपचार में काम आते हैं।
इन पौधों में परम्परागत और सहज उपलब्ध तुलसी, गिलोय, चंदन, लेडीपीपर के अलावा दुर्लभ औषधीय पौधे ब्राम्ही, अश्वगंधा, हड़जोड, अपामार्ग, भृृंगराज, एलोवीरा, बच, पुनर्नवा, लाजवंती,कडुचिरायता, सफेद चित्रक, शताबरी, बड़ीगुड़मार, लेवेंडर, पत्थरचटा, रूद्राबहार, अपराजिता, गुगल, मिंट, सर्पगंधा, के पौधे शामिल है। स्काडा में विकसित लेमन ग्रास ट्री और पामरोज की पत्तियों से न केवल स्वादिष्ट चाय बनती है बल्कि ये कोलेस्ट्रोल गठिया, अनिद्रा, पाचन, कैंसर सेल्स जैसी बीमारियों में लाभदायक है।
औषधीय वाटिका में सामान्यतः हिमाचल प्रदेश में पैदा होने वाली स्टीविया और इंसुलीन प्लांट डायविटीज के मरीजों के लिए बेहद उपयोगी है, इससे न केवल ब्लड शुगर नियोजित रहती है बल्कि सर्दी जुकाम, उदर रोगों में भी इनकी पत्तियां रामबाण है। एमपी ट्रांसको में पहली बार विकसित इस औषधीय वाटिका का अवलोकन विगत दिवस प्रबंध संचालक इंजी. सुनील तिवारी ने सभी विभागाध्यक्षों की मौजूदगी में किया। प्रबंध संचालक ने इस वाटिका को विकसित कर संवारने वाले माली राकेश लखेरा से फीता कटवाकर उनकी मेहनत को भी अनोखा सम्मान दिया।